– डॉ. अजय शुक्ला ( व्यवहार वैज्ञानिक )
" सर्व मानव आत्माओं द्वारा पवित्रता को संजोए रखने के लिए परमात्म सत्ता की स्वीकारोक्ति से आत्मिक शक्तियों की जीवंतता का साक्षात्कार अद्भुत् सौंदर्य से युक्त होता है । आत्म स्वरुप की अच्छाई एवं सच्चाई सदा आत्म तत्व की उज्ज्वलता को उसके मूलभूत केंद्र - पवित्रता , से सम्बद्ध रखती है जिससे आत्मगत अनुभूति की पराकाष्ठा द्वारा महानता की स्थापना हो सके । लोक व्यवहार की पवित्रतम मंगलकारी महान अवस्था को विकसित करने में जीवन की अच्छाई और सच्चाई का सदैव ही विशिष्ट योगदान होता है । "
व्यक्तित्व निर्माण से व्यवहारगत उच्चता में अभिवृद्धि : –
जीवन का सजीव चित्रण व्यक्तित्व निर्माण की प्रक्रिया द्वारा संपन्न होता है जिसके अंतर्गत - व्यक्ति एक , व्यक्तित्व अनेक का व्यावहारिक स्वरुप सम्मिलित रहता है । चेतना का परिष्कार सुनिश्चित होने पर सर्व गुणों से सुसज्जित व्यक्तित्व , कृतित्व एवं अस्तित्व का श्रेष्ठतम प्रस्तुतीकरण संभव हो जाता है । राष्ट्र निर्माण की समर्पित संकल्पना का यथार्थ जब व्यक्ति की व्यवहारगत उच्चता में अभिवृद्धि करके गतिशील होता है तब बहुमुखी प्रतिभा की उत्पत्ति वास्तविक सद्प्रेरणा का आधार बन जाती है । स्वयं के संदर्भ एवं प्रसंग में व्यक्तिगत स्तर पर सम्पूर्ण व्यक्तित्व का आंकलन करते हुए अच्छाई को आत्मसात करना तथा सच्चाई को जीवन का प्रमुख केन्द्रीय भाव बनाना अनिवार्य होता है । जीवन की सत्यता द्वारा स्वयं को सतत रूप से विधिवत् मार्गदर्शन एवं परामर्श प्रदान करना व्यक्तित्व निर्माण की उज्जवल परम्परा का आधारभूत प्रमाण होता है ।
आत्मीय संबंधों की प्रगाढ़ता द्वारा मर्यादित आचरण : –
स्वयं के साथ स्वयं का संवाद होना अंतर्मन की पवित्रता का यथार्थ बोध है जिसमें मन , बुद्धि एवं संस्कार का नियमित परिमार्जन संपादित होता है । जीवन में संस्कारगत आचरण की वैभव सम्पन्नता व्यक्तित्व की अमूल्य धरोहर है जो एक दूसरे के साथ मर्यादित आचार - विचार एवं व्यवहार से निरंतर गतिशील रहकर उच्चता को प्राप्त होती है । आत्मीय संबंधो की प्रगाढ़ता का स्वरुप सदा ही अनासक्त परिदृश्य का द्योतक होता है जिसमें नि:स्वार्थ व्यवहार की निष्ठा सदैव अभिमुखित रहती है । व्यक्ति के अंत:करण का भाव जगत ही वैचारिक श्रेष्ठता की स्वीकारोक्ति से सम्बद्ध होने के कारण जीवन की अच्छाई और सच्चाई को व्यावहारिकता की कसौटी पर अनुकरण के साथ अनुसरण करना सहज हो जाता है । आत्मा के उन्नयन हेतु पुरुषार्थ के सूक्ष्म बिन्दुओं को आत्मीय संबंधों की श्रेष्ठता से अनुभव करके मर्यादित आचरण की नैतिक पृष्ठभूमि का निर्माण सुनिश्चित किया जा सकता है ।
गुणात्मक स्वरुप से सामाजिक परिवर्तन में योगदान : –
जीवन में गुणात्मक स्थिति की संवेदनशीलता निज कल्याण हेतु विभिन्न अवस्थाओं से अनुभव ग्रहण करने की जिज्ञासु प्रवृति को सदा जागृत रखती है । गुणात्मकता का सक्षम परिवेश व्यक्ति और घटना से उपराम होकर स्वयं को विचार एवं भावना से भी कर्मातीत बनने की शक्ति प्रदान करके अव्यक्त स्वरुप में स्थापित कर देता है । जीवन की उच्चता हेतु आत्म अनुभूति का सुखद संयोग शुद्ध उपयोग की दिशा में उन्मुख रहकर परमात्म सत्ता के प्रति सहज ही अनुगमन का अधिकारी बना देता है । सर्वगुण सम्पन्नता की श्रेष्ठता को धारण करने का पर्याय है कि व्यक्तिगत अच्छाई एवं सच्चाई के माध्यम से किए जाने वाले त्याग से सम्बद्ध कार्यों का भी त्याग अर्थात् त्याग का भी पूर्णत: त्याग अनिवार्य है । सामाजिक परिवर्तन की धारा में स्व - परिवर्तन के पश्चात् ही प्रवाहित हो जाने के श्रेष्ठ विकल्प प्राप्त होते हैं जो आत्मगत विशुद्धता से स्वत: ही अनुप्राणित हो जाते हैं ।
सकारात्मक बदलाव की प्रबल संभावना का यथार्थ : –
सार्थक जीवन के लिए उत्पन्न अभिप्रेरणा व्यक्तित्व की गरिमा को पुर्स्थापित करने में सद्गुणों का सदुपयोग निर्धारित करती है । आत्मिक स्वमान की वास्तविकता को स्वीकार करके श्रेष्ठ संस्कार का बीजारोपण करना ही पुण्य कर्म का परिणाम है जिसे प्रबल पुरुषार्थ से सुनिश्चित किया जाता है । सकारात्मक बदलाव की प्रबल संभावना का यथार्थ व्यक्तित्व की समग्रता को सर्वोच्च शिखर तक गतिशील करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ताकि आत्मिक शक्ति की पवित्रता को अनुभव किया जा सके । सत्य का स्वयं सिद्ध स्वरुप , जीवन की अच्छाई का पोषक है जिसमें - सांच को आंच नहीं , अर्थात सत्य की विजय अतं में होती है , से जुड़े संज्ञान - उच्चता के सानिध्य में श्रेष्ठता के आगमन का अनवरत आह्वान , करते हैं । जीवन की अच्छाई एवं सच्चाई का व्यावहारिक पक्ष स्वयं के परिवर्तन पर ही आधारित होता है जिसमें समयानुसार विधिवत मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है ।
आत्मगत अनुभूति की पराकाष्ठा से स्थापित महानता : –
जीवन में निष्पक्षता के समावेश से गुणवत्ता को बनाए रखने का पुरुषार्थ अनुभवी बनने की यथार्थता में नैसर्गिक रूप से सम्बद्ध हो जाता है । सर्व मानव आत्माओं द्वारा पवित्रता को संजोए रखने के लिए परमात्म सत्ता की स्वीकारोक्ति से आत्मिक शक्तियों की जीवंतता का साक्षात्कार अद्भुत् सौंदर्य से युक्त होता है । आत्म स्वरुप की अच्छाई एवं सच्चाई सदा आत्म तत्व की उज्ज्वलता को उसके मूलभूत केंद्र - पवित्रता , से सम्बद्ध रखती है जिससे आत्मगत अनुभूति की पराकाष्ठा द्वारा महानता की स्थापना हो सके । लोक व्यवहार की पवित्रतम मंगलकारी महान अवस्था को विकसित करने में जीवन की अच्छाई और सच्चाई का सदैव ही विशिष्ट योगदान होता है । जीवन का अन्तर्मुखी परिवेश आत्मिक पुरुषार्थ को नवीनता से सृजित करते हुए गतिमान बनाये रखता है जिससे आत्मगत उच्चता की अखंडता को अविनाशी स्वरुप में सदा अनुभव किया जा सके ।
– डॉ. अजय शुक्ला ( व्यवहार वैज्ञानिक )
- गोल्ड मेडलिस्ट , इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स मिलेनियम अवार्ड . - अंतरराष्ट्रीय ध्यान एवं मानवतावादी चिंतक - विश्व हिंदी महासभा , राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं राष्ट्रीय मनोविज्ञान सलाहकार प्रमुख -अखिल भारतीय हिंदी महासभा , नई दिल्ली , प्रबंध निदेशक - आध्यात्मिक अनुसंधान अध्ययन एवं शैक्षणिक प्रशिक्षण केंद्र , देवास , मध्य प्रदेश , दूरभाष : 91 31 09 90 97 / 98 26 44 93 85 , Mail : drajaybehaviourscientist@gmail.com