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सकारात्मकता का मनोविज्ञान एवं प्लेसीबो प्रभाव

Tue, Sep 5th 2023 / 20:40:19 शिक्षा
 सकारात्मकता का मनोविज्ञान एवं प्लेसीबो प्रभाव

- डॉ. अभय गुप्ता,


प्रख्यात शिक्षाविद एवं पूर्व प्राचार्य, मां नर्मदा महाविद्यालय, धामनोद, धार, मध्य प्रदेश .


[ सकारात्मक मनोविज्ञान, यह विज्ञान का वह पहलु है जिसका उद्देश्य जीवन को बेहतर बनाने के तरीकों का पता लगाना है। पॉजिटिव साइकोलॉजी के जरिए व्यक्ति को तनावमुक्त रखकर मानसिक रूप से स्वस्थ किया जाता है ताकि वह एक खुशहाल जीवन जी सके । सकारात्मक मनोविज्ञान का महत्व जीवन को आनंदित करने तक ही सीमित नहीं है अपितु यह व्यक्ति के मानसिक, शारीरिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है अर्थात् यह व्यक्ति के सर्वंगीण विकास में सहायता प्रदान करता है ]


सकारात्मक मनोविज्ञान द्वारा सर्वांगीण विकास  :-


सकारात्मक मनोविज्ञान एक वैज्ञानिक अध्ययन है जो व्यक्तिगत और सामाजिक कल्याण दोनों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, जीवन को सबसे अधिक जीने योग्य बनाता है। इसके अध्ययन में सकारात्मक व्यक्तिपरक अनुभव, सकारात्मक व्यक्तिगत लक्षण, और सकारात्मक संस्थानों का विशेष स्थान है। पॉजिटिव साइकोलॉजी कहें या सकारात्मक मनोविज्ञान, यह विज्ञान का वह पहलु है जिसका उद्देश्य जीवन को बेहतर बनाने तरीकों का पता लगाना है। पॉजिटिव साइकोलॉजी के जरिए व्यक्ति को तनावमुक्त रखकर मानसिक रूप से स्वस्थ किया जाता है ताकि वह एक खुशहाल जीवन जी सके। सकारात्मक मनोविज्ञान का महत्व जीवन को आनंदित करने तक ही सीमित नहीं है अपितु यह व्यक्ति के मानसिक, शारीरिक विकास के लिए भी महत्वपूर्ण है अर्थात् यह व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में सहायता प्रदान करता है ।


लोक कल्याण हेतु सकारात्मक मनोविज्ञान की भूमिका :


सकारात्मक मनोविज्ञान यह बताता है कि यदि आप शुरू से ही और हमेशा अपनी मानसिक अवस्था का ख्याल रखेंगे तो आप मानसिक तनाव जैसी बीमारियों से खुद को बचा सकते हैं। सकारात्मक मनोविज्ञान का अर्थ सिर्फ सकारात्मक सोच ही नहीं है बल्कि उसका एक पहलू यह भी है की यह इमोशन पर काम करता है। यह नकारात्मक अनुभव और इमोशन्स को अपनाते हुए यह आनंद, उत्साह, सन्तुष्टि और शांति पर ध्यान केन्द्रित करता है। सकारात्मक मनोविज्ञान के जनक मार्टिन सेलिगमैन माने जाते है उन्होंने 1998 में अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष के रूप में अपने कार्यकाल के लिए सकारात्मक मनोविज्ञान थीम के रूप में चुना। सकारात्मक मनोविज्ञान मानसिक बीमारी को दूर करने पर ध्यान केंद्रित करता है और कुत्सित व्यवहार और नकारात्मक सोच को बदलने पर जोर देता है और खुशी, भलाई और सकारात्मकता पर जोर देने को प्रोत्साहित करता है ।


प्लेसिबो इफेक्ट का आधारभूत वास्तविक यथार्थ क्या है :-


प्लेसबो एक लैटिन शब्द है । पाँचवी सदी में बाइबल के एक अंश में भी 'प्लेसीबो डॉमिनोज़' शब्द का इस्तेमाल किया गया था, जिसका अर्थ है - "मैं ईश्वर को प्रसन्न करूंगा ।" 18वीं सदी में सबसे पहली बार इस चिकित्सा पद्धति का प्रयोग किया गया था। प्लेसिबो चिकित्सा में मरीज को ठीक करने के लिए उसके विश्वास के आधार पर उसका इलाज किया जाता है। प्लेसीबो एक ऐसी चिकित्सा है जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता ।


प्लेसिबो द्वारा मरीज के भ्रम का इलाज किया जाता है  :-


कभी-कभी, लोग सोचते हैं कि वे बीमार हैं, जबकि ऐसा नहीं है। इसे भ्रम कहा जाता है. डॉक्टर इन लोगों को ऐसी गोली दे सकते हैं जिसमें वास्तव में कोई दवा नहीं होती है, लेकिन व्यक्ति फिर भी बेहतर महसूस करता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनका मानना है कि गोली उनकी मदद करेगी। यह वैसा ही है जैसे जब


आपको सर्दी हो और आप दवा लें, भले ही सर्दी अपने आप दूर हो जाए। इसे प्लेसीबो प्रभाव कहा जाता है। भले ही व्यक्ति को पता हो कि वे प्लेसिबो ले रहे हैं, फिर भी यह उन्हें बेहतर महसूस करा सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब हम किसी चीज़ पर विश्वास करते हैं तो हमारा दिमाग हमारे शरीर को बेहतर महसूस करा सकता है।


अनुसंधान के आधार पर शोधकर्ताओं का क्या कहना है :


शोधकर्ता कहते रहे हैं कि कभी-कभी लोगों को असली दवा के बजाय कैंडी जैसी नकली दवा देने पर भी बेहतर महसूस होता है। इसे प्लेसीबो प्रभाव कहा जाता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि व्यक्ति को पता है कि उन्हें नकली दवा मिल रही है या नहीं, फिर भी यह उन्हें बेहतर महसूस करा सकता है। हॉवर्ड मेडिकल स्कूल में प्लेसिबो इफेक्ट पर एक शोध किया गया था। इस शोध में अपच पीड़ित कुछ लोगों को इलाज के लिए दवा दी गई थी। लेकिन उन्हें यह भी बताया गया था कि ये सिर्फ मीठी गोलियां हैं और इनमें कोई दवा नहीं है। लेकिन फिर भी शोध में भाग लेने वाले लोगों को इन गोलिओं से अपच की समस्या में आराम मिला


प्लेसिबो इफेक्ट नैसर्गिक स्वरूप में प्रभावशाली क्यों है:


प्लेसिबो प्रभाव तब होता है जब कोई मानता है कि नकली दवा उन्हें बेहतर महसूस कराएगी, और तब वे वास्तव में बेहतर महसूस करना शुरू कर देते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारे दिमाग और शरीर जुड़े हुए हैं। जब हम किसी चीज़ काम करने की उम्मीद करते हैं, तो हमारा शरीर कभी-कभी ऐसी प्रतिक्रिया कर सकता है मानो वह कोई वास्तविक दवा हो। कुछ वैज्ञानिक सोचते हैं कि ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि हमारा शरीर एंडोर्फिन नामक एक प्राकृतिक दर्द निवारक दवा छोड़ता है। अन्य चीजें, जैसे गोली का रंग और आकार भी प्लेसबो प्रभाव कितनी अच्छी तरह काम करता है, इसमें अंतर डाल सकते हैं। कुछ लोग इस तरकीब का उपयोग दूसरों को यह विश्वास दिलाने के लिए करते हैं कि उनके पास विशेष शक्तियां हैं, लेकिन वास्तव में यह सिर्फ इस बारे में है कि हमारा दिमाग कैसे काम करता है ।


विज्ञान की नजर में क्या है प्लेसीबो इफेक्ट का सिद्धांत : -


प्लेसबो इफेक्ट का मतलब है ऐसा मेडिकल ट्रीटमेंट जो मरीज को " सही लगे लेकिन असल में "फर्जी" हो। जैसे मरीज को कोई गोली दे देना, कोई फर्जी इंजेक्शन दे देना या अन्य किसी प्रकार का ट्रीटमेंट देना, जो मरीज को सही लगे । और मजेदार बात ये है कि ये कॉन्सेप्ट सिर्फ चमत्कार के रूप में ढोंगी लोगों के द्वारा देखने को नहीं मिलता, बल्कि वैज्ञानिक भी इसका प्रयोग दवाओं के प्रभाव और मरीज के मनोविज्ञान के अध्ययन के लिए करते हैं।


मन के संबंधों में कैसे काम करता है प्लेसीबो इफेक्ट : --


प्लेसीबो इफेक्ट जैसा चमक्तकार दरअसल आपके मन (माइंड) और शरीर (बॉडी) के बीच के संबंध के कारण दिखता है। इसे आप 'मन की शक्ति' भी कह सकते हैं। यह तो आप भी जानते होंगे कि हमारे शरीर में रोगों से लड़ने के लिए एक खास सिस्टम होता है, जिसे इम्यून सिस्टम (प्रतिरक्षा तंत्र ) कहते हैं। इसके अलावा हमारा शरीर ढेर सारे केमिकल्स स्वयं बना सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि जब व्यक्ति को किसी दवा या इलाज पर विश्वास होता है, तो कई बार ( (कुछ मामलों में मरीज का शरीर स्वयं ऐसे केमिकल बना लेता है, जो दवा के जैसा प्रभाव छोड़ते हैं ।


प्लेसीबो इफेक्ट से कैसे हो जाते हैं चमत्कारिक परिणाम :


एक्सपर्ट्स के मुताबिक हमारी उम्मीदों और परिणाम के बीच एक गहरा रिश्ता होता है। आप किसी चीज के होने की जितनी ज्यादा उम्मीद करते हैं, आपको उतने अच्छे पॉजिटिव परिणाम (शरीर और रोगों के मामले में) देखने को मिलते हैं। यही कारण कि मरीज और डॉक्टर के बीज की बातचीत का असर भी रोगी पर काफी गहरा पड़ता है। यही काम धर्म गुरू, चमत्कारी बाबा आदि भी करते हैं कि मरीज के मन में बातचीत के द्वारा ऐसा विश्वास जगा देते हैं, कि मरीज अपने आप को ठीक होने की उम्मीदों से भर जाता है और उस पर प्रभाव दिखने लगता है ।

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