प्रकाशक – वर्ल्ड क्रिएटिविटी फोरम , नासिक , महाराष्ट्र , भारत .
" मुक्ति और जीवन मुक्ति की आशा में मरुस्थलीय छटपटाहट के मध्य उन्मुक्त आत्मानुभूति के आनंद का गौरवान्वित यशगान "
" सृष्टि के संवाहक परमपिता परमेश्वर के समक्ष श्रद्धा के सानिध्य में आस्था एवं विश्वसनीयता से परिपूर्ण नैसर्गिक आत्मगत संवाद की सृजनात्मकता का – ‘ नैवेद्य स्वरूप , सात्विकता की सुखद परिणिति है...’ जिसमें आत्मा के आगमन और प्रस्थान की चिंतनशील , अनवरत धुरी में आत्मिक सहज स्वीकृति का गहनतम संबंध मानवता का हेतु बनकर –
सर्वजन हिताय , सर्वजन सुखाय...’ के संदेश में नव दृष्टिगत संबोधन प्रकृति प्रदत महानतम उदारता के सुखांत की उपलब्धता के अंतर्गत अनुभूत सुनिश्चित पक्ष के साथ ही दु:खांत की अवस्थाओं में दृष्टिकोण के समयानुसार , परिस्थितिगत परिवर्तित भाव और विचार का समिश्रित समायोजन –
अंततः मनुष्य बने रहने के आह्वान...’ को ईश्वरी विराटता की उद्देश्यपरक कृपा दृष्टि के स्वरूप में , आखिर कहां तक एवं क्या कुछ ? ‘ सद्चिंतन की सूक्ष्म विश्लेषणात्मक दृष्टि...’ विचित्र विविधताओं से जुड़ी स्थितियां , मार्गदर्शन के लिए स्वयं ही निर्मित हो जाएंगी , जिनका अंतरंग संदर्भ तथा प्रसंग आत्मानुभूति के माध्यम से अभिव्यक्त मानवीय पृष्ठभूमि से संबद्ध –
भौतिक , अभौतिक एवं पराभौतिक संवेदनाओं... ’ के विखराव को उच्चतम आयाम प्रदान करने की न्यायोचित अभिलाषा से सराबोर होकर जब नित – नूतन सृजनात्मक भावभूमि के संसर्ग में गतिमान होता है तब – ‘ आत्मिक ध्वनि के बाह्य कोलाहल में मंगल यात्रा का शंखनाद...’ आत्मिक सुखानुभूति के केंद्रीय भाव स्वरूप अर्थात –
‘ अंतःकरण द्वारा आत्मानुभूति से परमात्मानुभूति...’ की दिशा में अग्रसर रहते हुए प्रेम पुंज के अनहद नाद से आह्लादित होकर परम सत्ता की पालनहार विशालता के सम्मुख आभार युक्त मनोहरी प्रकृतिगत उपादेयता अर्थात चेतना की चैतन्यता के प्रमाणिक उद्बोधन –
‘ अजर , अमर , अविनाशी , अचल , अडोल , अविरल , अविराम , अकल्पनीय , अविश्वसनीय , अद्भुत , अदृश्य , अविस्मरणीय , आनंददाई और असंभव की प्रतिबिंबित श्रृंखला के प्रत्युत्तर में अविच्छिन्न रूप से आबद्ध – " मुक्ति और जीवन मुक्ति की आशा में मरुस्थलीय छटपटाहट के मध्य आत्मानुभूति के आनंद का गौरवान्वित यशगान...
" स्थित प्रज्ञता की विशिष्ट एवं व्यवहारिक क्रमबद्ध पर्याय का प्रतिनिधित्व करते हुए गतिशील , गुणात्मक भूमिका में ही सृजनात्मक आयाम की नवाचारी बोधगम्यता द्वारा निर्धारित – ‘ मंशा , वाचा एवं कर्मणा की पवित्रतम त्रिवेणी...’ से सुसज्जित सृजन धर्म की अस्मिता की रक्षक और संरक्षक मनीषी समदृश्य ज्ञान मंजूषा के सूक्ष्म प्रज्ञावान –
‘ प्रेरणादाई पक्षधरता की संवाहक अग्रदूत एवं खंड काव्य की प्रणेता , मनीषा स्वरूप अनुभव संपन्न अभिव्यक्ति...’ का मूलभूत रूप बनकर अखंडता के प्रबल प्रवाहित होने से आत्मिक आनंद की नैसर्गिक अनुभूतियों की प्रासंगिकता के साथ - साथ सर्व मानव आत्माओं को आत्मानुभूति की दुर्लभता प्रदान करने की सक्षमता के पश्चात भी –
‘ सहज एवं सरल भाव भंगिमा और बाल सुलभ चेष्टा की अनुकूलता में आत्म तत्व अर्थात को स्वयं की... ’ प्राप्ति हो जाना सौभाग्यशाली उपलब्धि से संबद्ध जीवित , जिजीविषा के जीवंत स्वरूप में प्रामाणिक प्रबोधन का – ‘ ऊर्ध्वगामी चिंतन से परिपूर्ण , आत्म हितकारी , सर्व कल्याणकारी तथा लोक मंगलकारी दिव्य आलोक के मानिंद...’ सृजन धर्म के संपूर्ण निर्वहन एवं महान योगदान हेतु अनंत शुभकामनाएं एवं हार्दिक आत्मिक बधाई... । "
– डॉ. अजय शुक्ला ( व्यवहार वैज्ञानिक )
गोल्ड मेडलिस्ट , इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स मिलेनियम अवार्ड
अंतरराष्ट्रीय ध्यान एवं मानवतावादी चिंतक और
मनोविज्ञान सलाहकार प्रमुख - विश्व हिंदी महासभा .
राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष - अखिल भारतीय हिंदी महासभा , नई दिल्ली .
प्रबंध निदेशक - आध्यात्मिक अनुसंधान अध्ययन एवं शैक्षणिक प्रशिक्षण केंद्र ,
देवास - 455221, मध्य प्रदेश ,दूरभाष 91 31 09 90 97 / 98 26 44 93 85 Mail : drajaybehaviourscientist@gmail.com